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Showing posts from April, 2014

भनेडा के नक्काल

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भनेडा बिजनौर जानपद का एक प्रसिद्ध गॉंव है ।  इसके नक्काल दूर -दूर तक अपनी कला  के लिये प्रसिद्ध रहें हैं ।  भनेडा के  प्रसिद्ध लेखक पत्रकार  के एस तूफान का नक्कालों पर लिखा  ले ख प्रस्तुत है 

श्री भोलानाथ त्यागी के फेसबुक पेज पर डॉ उषा त्यागी का चित्रकार हरिपाल त्यागी पर लेख

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हरिपाल त्यागी;कला की नशीली महक हरिपाल त्यागी जी का जन्म, 20 अप्रैल सन् 1934 ई0 को जनपद बिजनौर के ग्राम महुवा में हुआ।आपके पिता का नाम श्री शेर सिंह त्यागी तथा माता का नाम श्रीमती दयावती देवी था। महुवा गाँव के नाम में एक नशीली महक है।ऐसी ही महक गाँव के लोगों की जिन्दगी में भी है। छोटा किसान परिवार, घर में गरीबी तो थी ही उससे भी कहीं ज्यादा कंजूसी थी। इस तरसाव ने हरिपाल के मन में चीजों के प्रति, गहरी ललक पैदा कर दी। उन्हें सहज ढंग से पाने में जो रस है, उससे कहीं ज्यादा रस घोल दिया। हरिपाल जी के ,ताऊ जी के बेटे रविंद्रनाथ त्यागी पढ़ाई में कुछ साल आगे थे ,कमरे में तीन तस्वीरें-स्वामी दयानन्द, गा्रमोफोन और ताला। उन्हें देख, हरिपाल त्यागी जी को ललक उठी, कहीं से रंग मिल जाये तो वह भी अपनी तस्वीरोें में रंग भर सके। हरिपाल, परिवार में इकलौता बेटा। पिता की उससे बेहद प्यार। लेकिन प्यार प्रकट करने का अपना अंदाज। पढ़ाई में हरिपाल की बहुत कम दिलचस्पी थी। समय मिलतेे ही तस्वीरें और माटी की मूंरतें बनाते । बचपन में मुशीराम की नौटंकी पार्टी गाँव में आयी। नौटंकी की कमलाबाई ने हरिपाल के बालमन को आन्दो

कवि राजगोपाल

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कवि राजगोपाल पर डॉ उषा त्यागी का बिजनौर टाइम्स में १३   अप्रैल २०१४ में छपा  लेख  

राज गोपाल सिंह बिजनौरी नही रहें

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राज गोपाल सिंह नही रहें राजगोपाल सिंह नहीं रहे। राजगोपाल  बिजनौरी कवि, गीतकार के साथ साथ एक बहुत अच्छे मित्र थे। मेरे कॉलेज के सखा। बी.ए में अध्ययन के दौरान उनसे परिचय हुआ। कई साल साथ रहा। उनका गला बहुत अच्छा था। बहुत शानदार गीत  गाते , रतजगे करते कब गीत लिखने लगे पता नहीं चला।  दिल्ली  पुलिस में नौकरी मिलने के बाद फिर कभी संपर्क  नहीं हुआ। जीवन की व्यसतता में  बिजनौर आने पर वे कभी मिले नहीं। दिल्ली मैं   जाते बहुत बचता हूं। कभी इस सुदामा को जरूरत भी नहीं हुई। हां गाहे -बगाहे उनकी कवितांए  दोहे पढ़ने को मिलते रहे। टीवी पर एक बार लालकिले से उन्हें कविता पाठ करते देख बहुत सुखद लगा। प्रत्येक कवि का सपना होता है  वह लाल किले में होने वाले कवि सम्मेलन में कविता पाठ करे। यह सपना उनका कई बार पूर्ण  हुआ। आज सवेरे डा अजय जनमेजय के फोन से उनके निधन का पता चला। यह भी पता चला कि कई  माह से बीमार थे।  उनके परिवार जनों से उनकी खूब सेवा की। बिजनौर के भाटान स्कूल से  राजकीय इंटर कॉलेज  के जाने वाले रास्ते पर उनका घर है। यहीं  उनका एक जुलाई  १९४७ में जन्म हुआ। बिजनौर की गलियों में खेलकूद कर बड़े ह