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Showing posts from 2014

गजलकार व साहित्यकार दुष्यंत त्यागी

सुप्रसिद्ध गजलकार  व साहित्यकार दुष्यंत त्यागी की पुण्यतिथि पर विशेष हाथों में अंगारों के लिए सोच रहा था, कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए।। आम आदमी के दु:ख सुख को शिद्दत से महसूस जब किसी शायर और लेखक की कलम करती है तो कालजयी कृतियां जन्म लेने लगती हैं। बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा। सदियों के बाद ही कोई व्यक्तित्व वक्त का सांचा बदलने आता है। डॉ.इकबाल ने जो कहा था वो कितना बड़ा सच था। आम आदमी के हाथों में अंगारे एवं सीने में पीड़ा की गंगा अविरल रूप से बहती रहती है। जब पीड़ा हिमालय का रूप ले लेती है तो कह उठती है : हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। जी हां, ये दुष्यन्त कुमार ही थे, जिन पर आज जनपद बिजनौर ही नहीं, जहां राजपुर नवादा गांव में उनका जन्म १ सितंबर १९३३ को हुआ था, बल्कि पूरा देश गर्व करता है। और करे भी क्यों न, ये वो लाडला गजलकार है, जिसने गजल के मानी ही बदल दिए, नहीं तो गजल का शाब्दिक अर्थ महबूब से बातें करना था। दुष्यंत ने गजल को महबूब के गेसू एवं रुखसारों से निकालकर यथार्थ की जमीं पर उतार दिया। मैं जिसे ओढ़ता बिछाता

अफजलगढ़ पर चिंगारी का स्पेशल इशू

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अफजलगढ़ पर चिंगारी का स्पेशल इशू

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१८ दिसंबर पर चिंगारी सांध्य  ने जनपद के प्राचीन शहर अफजलगढ़ पर विशेष सामग्री छपी । मदीना न्यूज़ पेपर पर भी विस्तार से छापा है 

चिंगारी संध्या दैनिक का नहटौर पर विशेष परिशिष्ठ

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चिंगारी संध्या दैनिक ने ११ दिसंबर को नहटौर पर विशेष परिशिष्ठ छापा । इसमे  के आंदोलन में महत्त्व पूर्ण योगदान करने वाले उर्दू समाचार पत्र मदीना पर भी विशेष स्टोरी छापी          आजादी

पूर्व पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और बिजनौर

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पूर्व  पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और बिजनौर  २३ दिसम्बर २०१४ अमरउजाला  २३ दिसंबर २०१४ दैनिक जागरण 

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की दो बेटिओं की बिजनौर में हुई थी शादी

। २३ दिसम्बर १९०२ को जन्में देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने किसानों के हक की लड़ाई लड़कर किसानों के मसीहा के रूप में अपनी पहचान बनाई है। चौधरी चरण सिंह को जनपद बिजनौर से काफी लगाव रहा है। उन्होंनें चांदपुर में भी अनेक बार जनसभाओं को सम्बोधित कर क्षेत्रवासियों से रूबेरू हुए हैं। चौधरी साहब की दो लड़कियों की शादी जनपद में ही हुई है। चांदपुर विधान सभा क्षेत्र के गांव शादीपुर मिलक में पुत्री शारदा की इंजीनियर वासदेव सिंह के साथ जो वर्तमान में अमेरिका मे हैं तथा नजीबाबाद विधान सभा क्षेत्र के गांव हाजीपुर में एसपी सिंह के साथ शादी हुई है। जो पुलिस कमिश्रर हैं। चौधरी चरण सिंह ने हमेशा से ही किसानों की लड़ाई लड़ी है। बताते हैं कि चांदपुर शुगर मिल भी चौधरी चरण सिंह के प्रयासों की ही देन है। किसानों की लड़ाई लड़ते हुए चौधरी साहब ने अपने मुख्यमंत्री काल में मंडी समिति की स्थापना कराई। नलकूप की नाली के बराबर से निकली चकरोड पर पहले नलकूप कर्मचारियों को ही चलने का अधिकार था लेकिन चौधरी साहब ने किसानों को उस चकरोड पर चलने का अधिकार दिलाया। चौधरी साहब ने कभी जातपात का भेदभाव नहीं रखा। उनका रसो

नहटौर

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 नहटौर पर  ११ दिसम्बर २०१४  के चिंगारी  सांध्य दैनिक में  छापा एक लेख 

- भोलानाथ त्‍यागी

पत्रकारिता एवं साहित्‍य में समान रूप से चर्चित- भोलानाथ त्‍यागी का जन्‍म 4 नवंबर, 1953 में बिजनौर के सीकरी बुजुर्ग गांव में हुआ। भोलानाथ त्‍यागी - हिंदी एवं राजनीतिशास्‍त्र से एमए, एलएलबी, पीएचडी हैं। श्री त्‍यागी सात वर्ष की अल्‍पायु में ही पिता के सा ए से वंचित हो गए । लालनपालन और शिक्षा दीक्षा - पैजनियां (बिजनौर) में हुई। इनके नाना शिवचरण सिंह विख्‍यात स्‍वतंत्रता सेनानी एवं साहित्‍यप्रेमी थे -  काकोरीकांड के अमर शहीदों का प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय शिवचरण सिंह त्यागी के गांव पैजनियां (बिजनौर) से गहरा रिश्ता रहा है। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी , रोशन सिंह, चंद्रशेखर आजाद, जैसे अमर शहीदों ने शिवचरण सिंह त्यागी के यहां , गांव पैजनियां में अज्ञात वास किया था। स्वर्गीय त्यागी एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने कभी सरकार से न पेंशन ली और न ही कोई अन्य लाभ। पैजनियां गांव को स्वतंत्रता आंदोलनकारियों का तीर्थ भी कहा जाता है।  जिसके चलते, गणेश शंकर विद्यार्थी, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, जैनेंद्र कुमार जैन और बनारसी दास चतुवेर

पी के साहिल

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29 नवंबर के अमर उजाला के बिजनौर संस्करण में छापा डॉ वीरेन्द्र का आलेख 

सुशील वत्स

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सुशील वत्स बहुत बड़े चित्रकार हैं ! बिजनौर जनपद के रहने वाले ८४ वर्षीय वत्स से पिछले दिनों मिलने का अवसर मिला!श्री वत्स बहुत सरल हैं ! बहुत . देर तक मैं   उनसे बतियाता रहा ! उनपर अमर उजाला में २० अक्टूबर में छपा मेरा लेख 

गंगा मेला विदुरकुटी

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६ नवंबर में अमरउजाला बिजनौर में विदुर  कुटी के गंगा मेले पर छापा शैलेन्द्र गौड  का एक लेख

गंगा मेला

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पांच नवंबर २०१४ के अमर उजाला मेरठ में गंगा मेले पर छपा एक लेख

सावन की कांवड और ‌बिजनौर

सावन की शिवरात्रि से पूर्व कांवड‌‌ियों का भारी रेला रास्तों पर होता है।गंगा की दूसरी साइड मुजफ्फरनगर ,मेरठ ‌,दिल्ली व ह‌रियाणा राज्य के लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर ह‌रिद्वार से ‌निकलतें हैं। इनका रास्ता मुजफरनगर मेरठ होकर होता है।हाला‌कि व्यवस्था के ‌लिए ये सब कुछ साल से ‌कांवड लेने बिजनौर होकर ह‌रिद्वार जातें हैं।  सावन में ही मुरादाबाद, बुलंदशहर के भारी तादाद में कांव‌‌ड‌िए ‌बिजनौर से होकर वापस अपने घर जातें हैं। आश्चर्य की बात ये है ‌कि ‌बिजनौर जनपद में सावन में कावंड  लाने का प्रचलन नहीं है।यहां फरवरी में पड़ने वाली शिवरात्रि पर कांवड लाने का प्रचलन है। कुछ समय से अब कांवड आने लगी। वरन इस शिवरात्रि पर ‌बिजनौर जनपद में भगवान शिव का पूजन भी बहुत ही कम होता था। हाला‌कि ‌बिजनौर जनपद में भगवान राम और कृष्ण के प्राचीन  मं‌दिर नही हैं। जो मं‌दिर हैं  वे ज्यादा पुराने नहीं। पुराने मं‌दिर भगवान शिव के ही हैं। ‌जिला गजे‌टियर कहता है ‌कि ‌बिजनौर भार शिवों का क्षेत्र रहा हैं। यहां के शिव उपासक कंधे पर शिव ‌लिंग लेकर चलते थे। जनपद में पुराने शिवालय गंज में ‌निगमागम ‌विद्यालय में

सुशांत सिंह बिजनौरी

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जागरण के बिजनौर जिला प्रभारी  प्रवीण वशिस्ट का १५ जुलाई में दैनिक जागरण में प्रकाशित लेख 

बिजनौरी थी जोहरा बेग़म

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12  जुलाई के दैनिक जागरण में प्रकाशित प्रवीण वशिषठ  का लेख 

दरगाहे नजफ़े हिन्द

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 दरगाहे नजफ़े हिन्द पर २६  मई के  जागरण में प्रकाशित एक लेख 

बिजनौर के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी बाबू रतनलाल जैन

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 कवि हुक्का का लेख  २४ मई २०१४ को चिंगारी सां ध्या में प्रकाशित

डॉ रामस्वरूप आर्य का हिंदी गजलकार दुष्यंत पर लिखा एक लेख

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देश के प्रसिद्ध चित्रकार बिजनौर जनपद निवासी हरिपाल त्यागी

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  देश के प्रसिद्ध चित्रकार बिजनौर जनपद निवासी हरिपाल त्यागी पर आज ७ मई 2014 के जनवाणी में अंक में रजनीश त्यागी का एक लेख

भनेडा के नक्काल

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भनेडा बिजनौर जानपद का एक प्रसिद्ध गॉंव है ।  इसके नक्काल दूर -दूर तक अपनी कला  के लिये प्रसिद्ध रहें हैं ।  भनेडा के  प्रसिद्ध लेखक पत्रकार  के एस तूफान का नक्कालों पर लिखा  ले ख प्रस्तुत है 

श्री भोलानाथ त्यागी के फेसबुक पेज पर डॉ उषा त्यागी का चित्रकार हरिपाल त्यागी पर लेख

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हरिपाल त्यागी;कला की नशीली महक हरिपाल त्यागी जी का जन्म, 20 अप्रैल सन् 1934 ई0 को जनपद बिजनौर के ग्राम महुवा में हुआ।आपके पिता का नाम श्री शेर सिंह त्यागी तथा माता का नाम श्रीमती दयावती देवी था। महुवा गाँव के नाम में एक नशीली महक है।ऐसी ही महक गाँव के लोगों की जिन्दगी में भी है। छोटा किसान परिवार, घर में गरीबी तो थी ही उससे भी कहीं ज्यादा कंजूसी थी। इस तरसाव ने हरिपाल के मन में चीजों के प्रति, गहरी ललक पैदा कर दी। उन्हें सहज ढंग से पाने में जो रस है, उससे कहीं ज्यादा रस घोल दिया। हरिपाल जी के ,ताऊ जी के बेटे रविंद्रनाथ त्यागी पढ़ाई में कुछ साल आगे थे ,कमरे में तीन तस्वीरें-स्वामी दयानन्द, गा्रमोफोन और ताला। उन्हें देख, हरिपाल त्यागी जी को ललक उठी, कहीं से रंग मिल जाये तो वह भी अपनी तस्वीरोें में रंग भर सके। हरिपाल, परिवार में इकलौता बेटा। पिता की उससे बेहद प्यार। लेकिन प्यार प्रकट करने का अपना अंदाज। पढ़ाई में हरिपाल की बहुत कम दिलचस्पी थी। समय मिलतेे ही तस्वीरें और माटी की मूंरतें बनाते । बचपन में मुशीराम की नौटंकी पार्टी गाँव में आयी। नौटंकी की कमलाबाई ने हरिपाल के बालमन को आन्दो

कवि राजगोपाल

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कवि राजगोपाल पर डॉ उषा त्यागी का बिजनौर टाइम्स में १३   अप्रैल २०१४ में छपा  लेख  

राज गोपाल सिंह बिजनौरी नही रहें

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राज गोपाल सिंह नही रहें राजगोपाल सिंह नहीं रहे। राजगोपाल  बिजनौरी कवि, गीतकार के साथ साथ एक बहुत अच्छे मित्र थे। मेरे कॉलेज के सखा। बी.ए में अध्ययन के दौरान उनसे परिचय हुआ। कई साल साथ रहा। उनका गला बहुत अच्छा था। बहुत शानदार गीत  गाते , रतजगे करते कब गीत लिखने लगे पता नहीं चला।  दिल्ली  पुलिस में नौकरी मिलने के बाद फिर कभी संपर्क  नहीं हुआ। जीवन की व्यसतता में  बिजनौर आने पर वे कभी मिले नहीं। दिल्ली मैं   जाते बहुत बचता हूं। कभी इस सुदामा को जरूरत भी नहीं हुई। हां गाहे -बगाहे उनकी कवितांए  दोहे पढ़ने को मिलते रहे। टीवी पर एक बार लालकिले से उन्हें कविता पाठ करते देख बहुत सुखद लगा। प्रत्येक कवि का सपना होता है  वह लाल किले में होने वाले कवि सम्मेलन में कविता पाठ करे। यह सपना उनका कई बार पूर्ण  हुआ। आज सवेरे डा अजय जनमेजय के फोन से उनके निधन का पता चला। यह भी पता चला कि कई  माह से बीमार थे।  उनके परिवार जनों से उनकी खूब सेवा की। बिजनौर के भाटान स्कूल से  राजकीय इंटर कॉलेज  के जाने वाले रास्ते पर उनका घर है। यहीं  उनका एक जुलाई  १९४७ में जन्म हुआ। बिजनौर की गलियों में खेलकूद कर बड़े ह

तीन जिलों के उम्मीदवारों की तकदीर भी लिखता था बिजनौर

Mon, 24 Mar 2014 11:16 PM (IST  jagran ki story प्रवीण वशिष्ठ, बिजनौर। लोकतन्त्र के महापर्व में आहुति देने जा रहे इस दौर के अधिकांश लोग इस तथ्य से अनजान हैं कि 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनावों में बिजनौर जिले के मतदाताओं का एक हिस्सा वर्तमान उत्तराखंड राज्य और सहारनपुर जिले से जुड़कर वहां की दो सीटों के उम्मीदवारों की तकदीर भी लिखता था। इनमें से एक सीट पर जनपद निवासी स्वतन्त्रता सेनानी महावीर त्यागी चुने गए थे। वर्ष 2009 में नए परिसीमन के बाद बिजनौर लोकसभा क्षेत्र बिजनौर के साथ-साथ मुजफ्फरनगर और मेरठ जिलों तक फैल गया है। इतने अधिक क्षेत्र में फैले लोकसभा क्षेत्र में पहुंचना सांसद के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन पहले लोकसभा चुनाव में स्थिति और भी अधिक परेशानी भरी थी। बिजनौर जिले का अधिकांश हिस्सा बिजनौर (दक्षिण) नाम की सीट में शामिल था और इस सीट से नेमीशरण जैन ने गोविंद सहाय को हराकर विजय प्राप्त की थी। इसके अलावा जिला दो दूरस्थ सीटों में भी बंटा था। देहरादून-बिजनौर (उत्तर-पश्चिम) -सहारनपुर (पश्चिम)सीट में नजीबाबाद और गढ़वाल (पश्चिम)-टिहरी गढ़वाल-बिजन
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पूर्व सांसद स्वर्गीय महिलाल पर दैनिक बिजनौर टाइम्स में प्रकाशित एक लेख

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अमर उजाला में नौ मार्च के अंक में प्रकाशित मेरा एक लेख

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दुनिया के जूनियर आर्टिस्ट पी.के. साईल

28 जनवरी। पुण्यतिथि है दुनिया के जूनियर आर्टिस्ट पी.के. साईल डा. वीरेंद्र स्योहारा। फिल्म इंडस्ट्रीज के ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार की फिल्म मेला में ये जिंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे, अफसोस हम न होंगे-गाना जिस फकीर पर फिल्माया गया वो आज भी लोगो की याद में जिंदा है। लेकिन शायद ही किसी को मालूम हो कि इस फकीर की एङ्क्षक्टग करने वाला कलाकार स्योहारा का था। नाम था महमूद। बचपन में मां -बाप का साया सर से हट जाने के बाद महमूद ११ वर्ष की उम्र में पूना चले गये ।यहां पेट की आग रंगमंच तक ले आई। कुछ वर्षों तक उस समय के प्रसिद्ध कव्वाल बाबू भाई की कम्पनी में सहायक कव्वाल के रूप में काम कर अलग पहचान बनाई। कम्पनी का मुम्बई में प्रोग्राम होने पर महमूद को मुम्बई इतनी पसंद आई की ये वहीं रम गये। उस समय बन रही साईलैंस फिल्मों में काम किया। जब बोलती फिल्म आनी शुरू हुई। पहली बोलती फिल्म आलम आरा में महमूद ने काम किया। उसी समय उन्होंने अपना नाम पी.के. साईल रख लिया था। जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन के सदस्य बन चुके थे। उन्होंने मुम्बई में ही एक मुस्लिम महाराष्टन से शादी कर ली। उनके एक बेटी और एक बेटा पैदा ह