जवाहरवीर गोगा जी के जीवन का संक्षिप्त विवरण
 उत्तर प्रदेश के सीमा पर बसा अन्तिम गांव रेहड़  प्राचीन काल मे महानगर जैसी शोभा रखने वाले रेहड़ को सिरसापट्टम के नाम से जाना जाता था। प्राकृतिक आपदाओं के थपेड़े झेलते झेलते सिरापट्टम ने अपना वास्तविक रूप खो दिया तथा वर्तमान रूप मे आ गया।
१४ वी सदी की बात है कि सिरसापट्टम के (रेहड़) राजा कोरापाल सिंह ने अपनी पुत्री राजकुमारी बांछल व राजकुमारी कांछल का विवाह राजस्थान राज्य के जनपद चुरू के रिसायत ददरेवा
 के राजा जेवर सिंह व उनके भाई राजकुमार नेबर सिंह से कर दिया। विवाह होने के लंबे समय बाद तक दोनो भाई को संतान सुख प्राप्त नही हुआ।
संतान न होने तथा तथा राज्य को उत्तराधिकारी न मिलने कर चिंता राजा जेबर सिंह व रानी बांछल को दिन प्रतिदिन खोखला करने लगी। नगर में भ्रमण करने आये साधु के एक दल रानी व राजा को उनकी परेशानी का कारण जानकर संतान प्राप्ति के लिये ददरेवा के नौलखा बाग मे अपनें शिष्यों सहित ठहरे गुरू गोरखनाथ कर ह्रदय से पूजा अर्चना कर बात कही। राजा जेबर सिंरह व रानी बांछल ने गुरू गोरखनाथ की  चरण बंदना शुरू की जिससें प्रसन्न होकर गोरखनाथ जी ने एक दिन बाद बांछल को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देने के लिये कहा। जब इसकी भनक बांछल की छोटी बहन संतानहीन रानी कांछल को पड़ी तो बह अपनी बहन रानी बांछल के कपड़े पहनकर पहले ही गुरू गोरखनाथ जी के पास पहुच गई  तथा छल कपट से पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद ले लिया।
उसके बाद जब रानी बांछल संतान प्राप्ति के लिये आशीष लेने गयी तब गुरू गोरखनाथ जी ने उन्हे पुत्र होने के लिये गुगल का प्रसाद दिया जिसके खाने से रानी बांछल गर्भवती हुई वही दूसरी ओर  गुरू के आशीर्वाद से रानी कांछल की कोख हरी हुई। समय बीतता गया एक दिन राजा जेबर सिंह की बहन राजकुमारी कलावती के उकसाने पर कि रानी बांछल के गर्भ मे पल रहा बालक राजा जेबर सिंह का नही है बहन की यह बात सुनकर राजा जेबर सिंह आग बबूला हो गयें तथा गर्भवती रानी बांछल को तुरंत राज्य से निकाल दिया गया। राज्य से निकाली गयी गर्भवती रानी बांछल रेहड़ के राजा अपने पिता राजा कोरापाल ङ्क्षसह के यहॉ आ गयी। प्रसव का समय निकट आने पर गर्भ मे पल रहे बालक (जवाहरवीर गोगा) ने स्वप्र मे रानी बांछल से कहा कि माता मुझे अपने पिता के यहॉ ले चलो मै यहॉ अपने ननिहाल मे जन्म नही लूगॉ। माता कांछल ने कहा पुत्र तुम्हारे पिता न मुझ पर संदेह करते हुऐ तुम्हे अपनी संतान न मानकर मुझे अपने राज्य से निकाला है मै पुन: वहॉ नही जा सकती। माता की ऐसी बात सुन गर्भ मे पल रहे बालक ने राजा जेबर सिंह को सपने मे कहा है पिता मेरेी माता रानी  कांछल चन्द्रमा की रोशनी की भॉति दोषरहित निष्कलंक एवं स्वच्छ चरित्र की है आप उन्हे ससम्मान पुन: अपने राज्य  मे वापस  लाये अन्यथा आपका समूल नाश हो जायेगा। राजा जेबर सिह यह सुनकर रेहड़ स्थित अपनी ससुराल सं अपनी पत्नी रानी कांछल को आदरसहित ददरेवा अपने महल ले गयें। ददरेवा पहुचकर रानी कांछल ने पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम जाहरवीर गोगा रखा गया वही दूसरी ओर रानी कांछल की छोटी बहन राजा नेबर सिंह पत्नी रानी बांछल ने दो पुत्रो अर्जन सिंह प सर्जन सिंह को जन्म दिया। जाहरवीर के युवा होने पर राजकुमारी सिरियल से उनका विवाह हुआ। जब जाहरवीर गोगा जी का राज्य का पद भार संभालने का समय आया तब जाहरबीर के चचेरे भाईयों अर्जन सिंह व सर्जन सिंह ने दिल्ली के राजा आंन्नद सिंह के साथ मिलकर बगाबत कर दी जिस बगावत ने युद्व का रूप ले लिया उस युद्व मे खुद को कमजोर पड़ता देख दिल्ली का राजा आंन्नद सिंह अर्जन सिंह व सर्जन सिंह को छोड़कर अपनी सेना सहित भाग खड़ा हुआ। युद्व मे खुद को अकेले देख  अर्जन सिंह व सर्जन सिंह को अपनी जान देकर युद्व की कीमत चुकानी पड़ी। युद्व के अंत मे जब जाहरवीर गोगा अपने चचेरे भाईयों अर्जन ङ्क्षसह व सर्जन सिंह के कटे शीश अपनी मॉ रानी कांछल को भेट करने गयें, जिन्हे देखकर रानी कांछल हो गयी और कहा जाहर तुमने अपने भाईयों को मारकर ऐसा अपराध किया है जिसे क्षमा नही किया जा सकता  जाओ तुम इस राज्य से निकल जाओ और कभी भविष्य मे मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना। अपनी माता की आज्ञा मानते हुऐ अपने किया का प्रायश्चित करने के लिये जाहरवीर अपनी पत्नी सिरियल को महल मे छोड़कर किसी निर्जन स्थान पर चले गयें। अपनी पत्नी को प्राणों से भी अधिक चाहने वाले जाहरवीर गोगा प्रतिदिन अपनी माता कांछल की चोरी से अपनी पत्नी सिरियल से मिलने आने लगें।  श्रावण मास की हरियाली तीज के अवसर पर जब रानी कांछल अपनी बहू से श्रृगांर करने के लिये कहने उसके कक्ष में जा रही थी तब उन्होने देखा कि उनकी पुत्रबघू सिरियल पहले से ही पूर्ण श्रृगंार किये है। जिसे देखकर रानी कांछल ने कहा बहू जब मेरा पुत्र यहॉ है कि नही तो इस श्रृगांर का क्या महत्तव है, रानी कांछल की यह बात सुनकर सिरियल ने कहा हे माता आपके पुत्र मेरे पति जाहरवीर गोगा जी प्रतिदिन रात्रि मे मुझसे मिलने आते है। अपने पुत्र को जीवित जान व प्रतिदिन महल मे आने की बात सुनकर रानी कांछल का सीना मातृ प्रेम से भर आया तथा सिरियल से अपने पुत्र को देखने की इच्छा प्रकट की जिस पर सिरियल ने उन्हे उनके पुत्र से मिलाने के लिये हा कर दी। प्रतिदिन की भॉति जब जाहरवीर अपनी पत्नी से मिलकर भोर के समय बापस जा रहें थे, रानी सिरियल ने माता कांछल को जाहरवीर दिखा दिया। माता कांछल अपने पुत्र को महल से जाता देख जाहरवीर को रूकने के लिये कहते हुऐ उनका पीछा करती हुई उनके पीछे दौडऩे लगी। माता को अपने पीछे आता देख तथा माता को अपनी सूरत न दिखाने की शपथ लिये जाहरवीर गोगा राजस्थान राज्य मे स्थित हनुमानगढ़ के गोगामैढ़ी नामक एक निर्जन स्थल पर पहुच गये और अपने नीले घोड़े सहित घरती मे समा गयें। इसके बाद इनकी पत्नी रानी सिरियल, माता कांछल, नाहर पंडित, भज्जू कोतवाल, रत्ना बाल्मीकि व उनका कुत्ता सॉकल भी वही पर समा गयें। उस दिन भाद्रपद के कृष्णपक्ष की नवमी थी तभी से देश के कोने कोने से आज तक प्रतिबर्ष लाखों श्रृद्धालु राजस्थान के ददरेवा मे स्थित जाहरवीर के महल एवं गोगामेढ़ी नामक स्थान पर उनकी म्हाढ़ी पर प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगते है।  दोनो स्थान पर प्रत्येक बर्ष हरयिाली तीज से शुरू होकर भाद्रपद के कृष्णपक्ष की नवमी तक जाहरवीर के विशाल मेले का आयोजप होता है। मान्यता है कि रेहड़ मे स्थित राजा कोरापाल के महल मे जहॉ पर जाहरवीर  ने गर्भ मे अपनी मॉ से बात की थी वहॉ पर महल के नष्ट हो जाने के बाद जाहरवीर गोगा जी की म्हाढी़ बना दी गयी थी जहॉ प्रत्येक बर्ष भाद्रपद की नवमी को हजारो श्रृद्धालु प्रसाद चढ़ाकर अपना सुखी वैवाहिक  जीवन शुरू करते है। किवंदति है कि जिस दंपति को संतान सुख नही मिलता उन्हे जाहरवीर गोगा जी की म्हाढ़ी पर सच्चे मन से मुराद मांगने पर संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है।
संकलनकर्ता - डॉ० आशुतोष भारद्वाज
                    रेहड़

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