जिलाधिकारी का आवास बना है मोरों का संरक्षण स्थल

मनमोहक


• अशोक मधुप
बिजनौर। शहर में मोर यकीन होने की बात नहीं है किंतु बिजनौर के डीएम निवास (चित्रमें) में मोर बड़ी संख्या में मौजूद हैं। सुबह और शाम को इन्हें नाचते देखा जा सकता है।
जंगल से राष्ट्रीय पक्षी मोर गायब हो रहा है। इनके खत्म होने और शिकारियों की कुदृष्टी के कारण पहले जंगलों में आसानी से मिल जाने वाला मोर अब नजर नहीं आता। यही हालत रही तो कुछ साल बाद यह किताबों के पन्नों तक सीमित रह जाएगा। इतना सब होने के बाद भी बिजनौर शहर के बीचों बीच बने डीएम निवास में यह काफी संख्या में मौजूद है। जिलाधिकारी निवास लगभग 17 हेक्टेयर में बना है। चारों और ऊंची बाउंड्री वाल होने के कारण यहां किसी की दखल अंदाजी भी नहीं हैं। शांत और सुरक्षित जगह होने के कारण यहां मोर स्वच्छंद विचरण करते रहते हैं।
जो भी डीएम यहां आए मोर उनके और उनके परिवार के लिए मनोरंजन का बड़ा साधन रहे। इसलिए सबका यही प्रयास रहा कि इनके प्राकृतिक आवास खत्म न हों। कोठी का स्टाफ मोरों का बहुत ख्याल रखता है। स्टाफ के कुछ साथी बताते हैं कि मोर उनके पास आराम से आते और उनके दिए खाद्य पदार्थ को आराम से खाते हैं। वे सबसे ज्यादा मुंगफली के दाने बडे़ चाव से खाते हैं। दिन छिपे के समय तो काफी संख्या में मोर कोठी के गेट के बाहर पेड़ियों के नीचे एकत्र हो जाते हैं। कर्मचारी बताते हैं कि इनके शाम के समय आने को देख वह प्रतिदिन इनके लिए कुछ न कुछ खाने का सामान बचाकर जरूर रखते हैं।
कोठी से कलेक्ट्रेट को जाने वाले रास्ते के दांए हाथ पर वृक्षों के नीचे बर्तन में इनके लिए पीने के लिए पानी रखा रहता है। इस स्थान के आसपास ये दिनभर घूमते नजर आते हैं। कर्मचारी इन्हें मोती नाम से बुलाते हैं। खेत में गर्दन नीची कर कुछ खाते समय भी मोती कह कर आवाज देने पर ये एकदम गर्दन उठाकर देखते हैं। मोर कैंपस के ऊंचे दरख्तों और कोठी की छत पर आराम से रहते ओर एक पेड़ से उड़कर दूसरे पेड़ पर जाते दिखाई देते हैं। एक अनुमान के अनुसार यहां 40 से 45 मोर है। इनमें मादा ज्यादा है, नर कम हैं। सीडीओ वीरेश्वर सिंह कोठी से सटे अधिकारियों के बने आवास मंे रहते है। वे बताते है कि सबेरे उनके टहलने के समय आठ दस मोर उनके आसपास घूमते मिलते हैं।
बहुत पुरानी है डीएम की कोठी
बिजनौर। डीएम की कोठी बहुत पुरानी है। इसके बनने का तो पता नहीं चलाता किंतु 1857 की आजादी की लड़ाई में नजीबाबाद के नवाब महमूद ने अंगे्रज कलेक्टर से इसी कोठी में जनपद का कार्यग्रहण किया था। इससे पहले से ही कलेक्टर यहां रहते है। कोठी का भव्य कैंपस है। लगभग 17 हेक्टेयर में बनी यह कोठी पुराने राजा महाराजों की याद ताजा कराती है। अब तो उसके पिछले भाग में सीनियर अधिकारियों के आवास बन गए तो रोडवेज साइड में कुछ कर्मचारियों और अधिकारियोंं के आवास है।


लेख 8 अप्रेल 2010 में अमर उजाला मेरठ में प्रकाशित

Comments

Popular posts from this blog

बिजनौर है जाहरवीर की ननसाल

बिजनौर के प्रथम मुस्लिम स्वतंत्राता सेनानी इरफान अलवी

नौलखा बाग' खो रहा है अपना मूलस्वरूप..