बिजनौर जनपद की एक कला चाहरबैत
सुभाष जावा सुभाष जावा जनपद के एक अच्छे लेखक हैं। मेरे अनुरोध पर यह लेख उनहोंने लिखा था, इसका यहां सदुपयोग किया जा रहा है ढप कहीं बजता है तो लगता है कि कोई आशिक अपनी महबूबा की याद में तराना छेड़े हुए है या महबूबा की जुदाई से उसके अंदर की छटपटाहट शब्दों में व्यक्त हो रही है। 'दायरा' कहीं गूंजता है तो लगता है कि कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका की याद में उसके सपने संजोये उसके रूप को अपने तरन्नुम में निहारता उसके इंतजार में पलके बिछाये है। कहीं 'चंग' की थाप पर मोहब्बती लहजे में प्रेयसी के शिकवे-शिकायत है, तो कहीं माशूक की बेवफाई के चर्चे तो समझिये ऐसी गायन विद्या कुच्छ और नहीं 'चहार बैत' है। 'चाहर बैत' उर्दू नज्म का ही एक रूप है। जिसका शाब्दिक अर्थ 'चहार' अर्थात चाहर व 'बैत' अथवा पंक्तियां यानिं चार पंक्तियों वाली कविता। उर्दू व्याकरण की दृष्टि से चहार बैत में पहली दो पंक्तियां मतला कहलाती हैं यानि प्रथम पंक्ति मिसरए अला, दूसरी पंक्तिञ् मिसरए सानी। इसके बाद एक बंद होता है। जिसकी चार पंक्तियाँ होती हैं। इन चार पंक्तियों में पहली तीन पंक्तियां